कुमाऊं की लोकगाथा पर आधारित पुस्तक तथा अन्य पुस्तकों का लोकार्पण

कुमाऊं की लोकगाथा पर आधारित पुस्तक तथा अन्य पुस्तकों का लोकार्पण

दून पुस्तकालय एवम् शोध केंद्र की ओर से लोक संस्कृतिविद् जुगल किशोर पेटशाली की कुमाऊं की लोकगाथाओं पर आधारित पुस्तक ‘मेरे नाटक‘ तथा चार अन्य पुस्तकों ‘जी रया जागि रया‘,‘विभूति योग‘,‘गंगनाथ-गीतावली‘ और ‘हे राम‘ का लोकार्पण और उन पर विमर्श का एक कार्यक्रम किया गया।यह कार्यक्रम 21 नवम्बर, 2022 को उत्तरांचल प्रेस के सभागार में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वक्ता के तौर पर लोक संस्कृतिकर्मी, लेखक और पत्रकार नवीन बिष्ट उपस्थित रहे। उन्होंने जुगल किशोर पेटशाली द्वारा उत्तराखण्ड की लोकगाथाओं और संस्कृति पर किये गये कामों का विश्लेषण करते हुए उन्हें पहाड़ की माटी से उपजा लोककर्मी बताया। नवीन बिष्ट ने कहा कि श्री पेटशाली लोक साहित्य जगत के एक ऐसे रचनाकार हैं जिनकी लेखनी सतत तौर पर हमारी लोक संपदा को संजोने का काम कर रही है। श्री पेटशाली पौराणिक व लोक संस्कृति के ऐसे अनछुए तत्थों को सामने लाने का बीड़ा उठाते हैं जिससे प्रायः समाज अनभिज्ञ सा रहता है। उनका यही अन्दाज उन्हें जुगल किशोर बना देता है। लोक के क्षेत्र में दिया गया उनका योगदान सच में अद्भुत है।

पेटशाली जी के साथ जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंगों को श्रोताओं के समक्ष रखते हुए साहित्यकार मुकेश नौटियाल ने कहा कि लोक साहित्य,संगीत और कला के क्षेत्र में जिन लोगों ने चुपचाप गंभीर काम कर नए मानक स्थापित किए उन्हीं में एक प्रमुख नाम जुगल किशोर पेटशाली का है। अल्मोड़ा के निकट अपने संग्रहालय में रहकर उन्होंने लोक साहित्य पर कई किताबें लिखी हैं। वर्तमान में लोक-गीतों और लोक-संगीत के नाम परोसी जा रही सतही प्रस्तुतियांे बीच पेटशाली जैसे गंभीर अध्येताओं द्वारा किया गया कार्य एक नई उम्मीद जगाता है। उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति के मूल स्वरूप के हासिए पर चले जाने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए नैाटियाल ने कहा कि राज्य बने बाइस साल हो गए लेकिन अभी तक हम पहाड़ी संगीत के शास्त्रीय स्वरूप को स्थापित नहीं कर पाए। ढोल-दमाऊं के परम्परागत सुर भी लोक से गायब होने लगे हैं इसके लिए भी काम करना नितांत जरूरी है।

संस्कृति व इतिहास के अध्येता डॉ. योगेश धस्माना ने जुगल किशोर पेटशाली जी को पर्वतीय लोक के अद्भुत चितेरे की संज्ञा प्रदान की और कहा कि अपने जीवन के शुरुआती दिनों से ही पेटशाली जी ने जिन विपरीत परिस्थितियों में रहकर लोक साहित्य की साधना के साथ रंगमंच के क्षेत्र में जो काम किया है वह अभूतपूर्व है। उन्होंने दूरदर्शन की ओर से प्रस्तुत राजुला मालूशाही धारावाहिक व अन्य महत्वपूर्ण नाटकों के लिए पटकथा लिखी है । इसके साथ ही बहुत से नाटकों का उन्होंने निर्देशन भी किया है। अल्मोड़ा शहर के निकट अपने प्रयासों से लोक संग्रहालय की स्थापित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्य सचिव श्री इन्दु कुमार पांडे जी ने की। श्री पांडे ने जुगल किशोर पेटशाली जी द्वारा लोक साहित्य पर किये गये कार्य को अद्भुत बताते हुए उसे लोक संस्कृति के क्षेत्र में मील का पत्थर बताया। उन्होनें कहा कि उनका लिखित साहित्य अध्येताओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। कार्यक्रम के शुभारम्भ में दून पुस्तकालय एवम् शोध केंद्र के सलाहकार प्रो. बी.के.जोशी ने मंचासीन अतिथियों और सभागार में उपस्थित लोगों का स्वागत किया और कहा कि इस संस्थान की ओर से पाठकों और साहित्य प्रेमियों के मध्य पुस्तकालयी संस्कृति को बढ़ाने की दृष्टि से पुस्तक लोकार्पण और अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों को समय-समय पर किये जाते रहते हैं। जुगल किशोर पेटशाली ने अपने उद्बोधन में वर्तमान समय में लोक संस्कृति में स्थापित मूल्यों की गिरावट पर चिंता जाहिर की। उन्होंने समाज और सरकार से इस दिशा मेें समुचित ध्यान देनकर इसे फिर से समृद्ध करने की बात पर जोर दिया। लोक साहित्य और पुस्तकालीय संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु इस प्रकार के आयोजन के लिए उन्होंने दून पुस्तकालय एवम् शोध केंद्र को साधुवाद दिया।

कार्यक्रम का संचालन संस्थान के प्रोग्राम एसोसिएट, चन्द्रशेखर तिवारी ने किया। लोकार्पण कार्यक्रम में देहरादून के अनेक गणमान्य लोग, साहित्यकार, बुद्धजीवी, पत्रकार, साहित्य प्रेमी तथा पुस्तकालय के सदस्यगण व युवा पाठक उपस्थित रहे।