सूफियाना संगीत पर वीडियो व्याख्यान

सूफियाना संगीत पर वीडियो व्याख्यान

देहरादून, 8 अप्रेल।दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के सभागार में आज सायं 4:30 बजे सूफियाना संगीत पर एक वीडियो व्याख्यान दिया गया। फ़िल्म और संगीत के जानकार और अध्येता श्री निकोलस द्वारा यह व्याख्यान दिया गया। उल्लेखनीय है कि दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र द्वारा समय-समय पर पुस्तक वाचन और चर्चा, संगीत, वृत्तचित्र फिल्म, लोक परंपराओं और लोक कलाओं, इतिहास, सामाजिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर केंद्रित कार्यक्रम किये जाते रहते हैं।
इसी क्रम में आज सूफ़ियाना संगीत पर आधारित व्याख्यान आयोजित किया गया।
निकोलस ने सूफ़ियाना संगीत के विविध पक्षों पर प्रारम्भिक जानकारी देते हुए विविध कार्यक्रमों, आयोजनों व फिल्मों में प्रस्तुत सूफ़ियाना संगीत के अलग-अलग बेहतरीन टुकड़ों को क्रमबद्ध रूप से दर्शकों के सम्मुख रखा। निकोलस हॉफ़लैंड द्वारा सूफी आंदोलन व उनके संगीत परम्परा पर भी गहनता से प्रकाश डाला ।
उल्लेखनीय है कि भारत में सूफ़ीवाद सूफ़ीवाद का भारत में एक इतिहास है जो 1,000 वर्षों से विकसित हो रहा है।सूफीवाद की उपस्थिति पूरे दक्षिण एशिया में इस्लाम की पहुँच बढ़ाने वाली एक अग्रणी इकाई रही है। 8 वीं शताब्दी की शुरुआत में इस्लाम के प्रवेश के बाद, सूफ़ी सूफ़ीवाद परंपराएं दिल्ली सल्तनत के १० वीं और ११ वीं शताब्दी के दौरान और उसके बाद शेष भारत में दिखाई दीं। चार कालानुक्रमिक रूप से अलग राजवंशों का एक समूह, प्रारंभिक दिल्ली सल्तनत में तुर्क और अफगान भूमि के शासक शामिल थे। इस फारसी प्रभाव ने इस्लाम के साथ दक्षिण एशिया में बाढ़ ला दी, सूफी विचार, समकालिक मूल्यों, साहित्य, शिक्षा और मनोरंजन ने आज भारत में इस्लाम की उपस्थिति पर एक स्थायी प्रभाव पैदा किया है। सूफी प्रचारक, व्यापारी और मिशनरी भी समुद्री यात्राओं और व्यापार के माध्यम से तटीय बंगाल और गुजरात में बस गए।
सूफ़ी परम्पराओं के विभिन्न नेताओं, तरीक़ ने सूफ़ीवाद के माध्यम से इस्लाम के लिए स्थानीयताओं को पेश करने के लिए पहली संगठित गतिविधियों को चार्टर्ड किया। संत की आकृतियों और पौराणिक कहानियों ने भारत के ग्रामीण गांवों में अक्सर हिंदू जाति समुदायों को सांत्वना और प्रेरणा प्रदान की। दिव्य आध्यात्मिकता, लौकिक सद्भाव, प्रेम, और मानवता की सूफी शिक्षाएं आम लोगों के साथ गूंजती थीं और आज भी हैं। निम्नलिखित सामग्री सूफीवाद और इस्लाम की एक रहस्यमय समझ को फैलाने में मदद करने वाले प्रभावों की असंख्य चर्चा करने के लिए एक विषयगत दृष्टिकोण लेगी, जिससे आज भारत सूफ़ी संस्कृति के लिए समकालीन महाकाव्य बन जाएगा।
इस अवसर पर शाश्वती ताल्लुकेदार, गांधीवादी विचारक बिजू नेगी,दून पुस्तकालय के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी सहित लेखक शैलेंद्र नौटियाल , सरिता भंडारी, सुरेंद्र सजवाण , श्री मनमोहन चढ्ढा, अंजलि भर्तहरि, शोध सहायक सुंदर बिष्ट, द्विजेन सेन मेमोरियल कला केंद्र के अध्यक्ष कर्नल विजय दुग्गल व अनेक कला व संगीत प्रेमी, बुद्धिजीवी व पाठक लोग उपस्थित रहे।