घनी संवेदनशीलता का लैंडस्केप है पुस्तक सिराज-ए-दिल जौनपुर
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र, देहरादून की ओर से आज 11 अगस्त, 2024 को सायं अमित श्रीवास्तव की सद्यः प्रकाशित पुस्तक सिराज-ए-दिल जौनपुर का लोकार्पण एवं लेखक से संवाद का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह पुस्तक सेतु प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। कार्यक्रम में वक्ताओं ने इस पुस्तक के विविध पक्षों पर सार्थक चर्चा करते हुए कहा कि पुस्तक के लेखक अमित श्रीवास्तव इस पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ हर पाठक को अपने शहर के अतीत व वर्तमान को याद करने के लिए प्रेरित करता है।
दरअसल सिराज-ए-दिल जौनपुर पुस्तक पाठक को शुरू से आखिर तक बाँध कर रखती है। यह शहर से जुड़ा हर एक पहलू को एक-एक कर उजागर करती है। कभी संस्मरण तो कभी वहाँ के हाशिए पर समझे जाने वाले लोगों से जुड़े किस्से के रूप में। ब्यौरों में इतनी तफ़सील है कि लगा मानो उस पुल से हम भी कई बार गुजरे हों अथवा उस किताब की दुकान पर हम ही खुद खड़े हों। जौनपुर की नामवर हस्तियाँ, उनकी उपलब्धियां, कवियों की कविताई और कवित्त, वहाँ के रचनाकारों की वो रंगीन सादगी, वहां की भाषा, साहित्य, इतिहास सब कुछ इस पुस्तक में शामिल है। कुल मिलाकर जौनपुर शहर की गंगा-जमुनी-संस्कृति इस किताब में बड़ी ही खूबसूरती से दर्ज हुई है।
कार्यक्रम में उपस्थित मुख्य चर्चाकार भुवन चन्द्र कुनियाल ने अमित श्रीवास्तव के व्यक्तित्व और उनके लिखे उपन्यास, कहानियों- कविताओं का ज़िक्र करते हुए उनके लेखकीय तत्वों में आत्मान्वेषण के साथ-साथ वृहद् स्तर पर समाज, मानवता और संस्कृति के बारे में चिंताओं के समावेश होने को चिन्हित किया। उन्होनें कहा कि एक स्तर पर यह किताब किसी ख़ास शहर के इतिहास-भूगोल-संस्कृति के ताने-बाने का व्याख्यान तो करती है परन्तु पाठक को इसमें गहराई में उतरते ही अपने जीवन में शामिल शहरों के सांस्कृतिक तत्वों का अनुभव होने लगता है। इस पुस्तक में तमाम ऐसी जानकारियां हैं जो किसी भी शहर या परिवेश को समझने के लिए नया दृष्टिकोण पैदा करती हैं। पाठक सिराज-ए-दिल में डूबकर अपना-अपना जौनपुर लेकर ही बाहर निकलते हैं।
कार्यक्रम में पुस्तक पर मुख्य चर्चाकार शंखधर दुबे ने कहा कि साहित्य में शहरों और कस्बों पर लिखने की सुदीर्घ परंपरा रही है। पश्चिम से लेकर पूरब तक मुंबई से लेकर कोलकाता तक और दिल्ली से लेकर लखनऊ तक खूब लिखा गया है। उत्तर प्रदेश के जौनपुर शहर को केंद्र में रखकर लिखी गई अमित श्रीवास्तव की ये किताब छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटी एक खांटी जौनपुरिया की अपने हिस्से में आए शहर की बायोग्राफी है जिसमें भूत और वर्तमान, इतिहास, भूगोल, संस्कृति और समाज सब एक साथ चहलकदमी करते हैं। किताब जौनपुर का सिर्फ बीते दिनों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आख्यान भर नहीं है बल्कि वर्तमान का भी एक जीवंत दस्तावेज है। पाठक जब किताब का अध्याय दर अध्याय पढ़ता जाता है तो लेखक की फोटोग्राफिक नजर से जौनपुर की इमारतों, परंपराओं और भूले-बिसरे, अल्पख्यात किरदारों से सायास साक्षात्कार करता चलता हैं। एक अर्थ में यह किताब अमित के हिस्से में आए जौनपुर पर जमी धूल परत को हटाने का प्रयास करती है। यह पुस्तक लेखक अमित श्रीवास्तव की विलक्षण निगाह और घनी संवेदनशीलता का लैंडस्केप है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए किसी को भी हैरानी होगी कि स्थानीय खानपान और रीति-रिवाज तथा गली मोहल्लों के बारे में जिस रोचकता से स्मृति आख्यान लिखे गए हैं उसी तरह से इतिहास में गुम किरदारों और ज्ञान-विज्ञान से जुड़े प्रसंगों को भी शानदार तौर पर उभारा गया है। इन सबमें लेखक का बहुश्रुत और बहुपठित व्यक्तित्व उभर कर सामने आता है। स्मृति आख्यानों को सिर्फ़ रोचक ढंग से लिखा ही नहीं गया है बल्कि शोध करके उसको वहां तक विस्तार दिया गया है जहां पाठक का मन पूरी तरह रमण करने लगता है और एक खास मुकाम पर लेखक उसे पहुंचा देता है। पुस्तक अद्भुत पठनीयता से भरी हुई है।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने लेखक अमित श्रीवास्तव और अतिथियों वक्ता व उपस्थित लोगों का स्वागत किया और किसी शहर पर इस तरह लेखन को साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बताया। इस अवसर पर गोपाल घुगत्याल, आकाश रावत, राहुल शेखावत, नितिन उपाध्याय, भारती मिश्रा,मनीष झा, शोभा शर्मा, डॉ.सुधारानी पांडे, डॉ.लालता प्रसाद, रुचिका, रंजना शर्मा, अभिषेक, प्रवीन कुमार, डॉ. डॉ.अतुल शर्मा, सुंदर सिंह बिष्ट,राजेश साह,मालविका चौहान, अनेक युवा पाठक, लेखक, साहित्यकार व अन्य प्रबुद्ध लोग उपस्थित रहे.