
संविधान और अंबेडकर पर विचार गोष्ठी का आयोजन
रविवार, 10 सितंबर को दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से संविधान और अंबेडकर मिथक, आख्यान, वास्तविकताएं और उससे जुड़े प्रमुख मुद्दों पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम पुस्तकालय के सभागार में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व न्यायधीश सी. एल. भारती ने की। इस विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने अम्बेडकर द्वारा भारतीय संविधान में उनके द्वारा दिये गये महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख करते हुए संविधान से सम्बन्धित विविध पक्षों पर सम्यक प्रकाश डालते हुए कई जानकारियां प्रदान कीं।
गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता पूर्व प्रोफेसर व सामाजिक चिंतक डाॅ. करनैल सिंह रंधावा ने बताया कि संविधान सभा में बहुत से सदस्य थे परंतु डाॅ. अंबेडकर ने ड्राॅफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में प्राप्त हजारों प्रस्तावों में से स्क्रुटनी करके संविधान सभा के सामने बहस के लिए प्रस्तुत किया। यह एक श्रमसाध्य और महति जिम्मेदारी युक्त कार्य था जिसे डाॅ. अंबेडकर ने बहुत सतर्कता एवं कुशलता से कर दिखाया। इसीलिए संविधान निर्माता का महत्वपूर्ण श्रेय डाॅ. अंबेडकर को दिया जाता है। विशिष्ट अतिथि सामाजिक विचारक संजय कुमार ने कहा कि भारत का संविधान डाॅ. अंबेडकर के अथक प्रयासों का ही परिणाम है, जिसमें डाॅ. अंबेडकर ने समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखकर संविधान में कानूनों को समाहित किया। उन्होंने महिलाओं, मजदूरों एवं अल्प संख्यक तथा पिछड़े वर्गो के लिए विशेष प्राविधान रखवाए। अध्यक्षता करते हुए पूर्व न्यायधीश ने कहा कि संविधान को छद्म रूप से खत्म करने के प्रयास भी चल रहे हैं।लोकतंत्र की रक्षा के लिए इसे हर कीमत पर बचा कर रखना होगा। एक स्वस्थ लोकतंत्र ही न्यायपूर्ण और समता मूलक समाज के लिए जरूरी होता है। आज के इस विचार गोष्ठी का सफल संचालन लेखक व शिक्षाविद व लेखक प्रोफेसर राजेश पाल ने किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने उपस्थित अतिथियों व लोगों का स्वागत किया और निकोलस हाॅफलैण्ड ने कार्यक्रम के अंत में आभार व्यक्त किया। सभागार में उपस्थित कई जिज्ञासु लोगों ने इस विषय पर अनेक सवाल जबाब भी किये। इस अवसर पर बिजू नेगी, जितेंद्र भारती, डॉ.धीरेन्द्रनाथ तिवारी, सुंदर सिंह बिष्ट, डॉ.विद्या सिंह, कल्पना बहुगुणा, समदर्शी बड़थ्वाल व रामशरण नुयाल सहित सभागार में कई सामाजिक चिंतक, शिक्षाविद, बुद्विजीवी, साहित्यकार, संस्कृति, कला व साहित्य प्रेमी, पुस्तकालय के सदस्य तथा युवा पाठक उपस्थित रहे।