रितुपर्णाे घोष की फिल्म चोखेर बाली का प्रर्दशन

रितुपर्णाे घोष की फिल्म चोखेर बाली का प्रर्दशन

देहरादून, 23 सितम्बर 2024। आज सायं दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सभागार में रितुपर्णाे घोष की चर्चित फिल्म चोखेर बाली का प्रर्दशन किया गया। पुस्तक लोकार्पण, वाचन और चर्चा, संगीत, लोक परंपराएं और लोक कलाएं, इतिहास और पत्रकारिता पर आधारित कार्यक्रमों में आज, फीचर व वृत्तचित्र के कार्यक्रम के तहत यह फ़िल्म सभागार में  प्रस्तुत  की गई।  उल्लेखनीय बात यह भी है कि विगत सप्ताह इस फिल्म की सह नायिका राइमा सेन देव वर्मा के साथ एक बातचीत का एक कार्यक्रम दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र ने आयोजित किया था।

वस्तुतः चोखेर बाली 2003 की बंगाली भाषा की एक नाट्य फिल्म है, जो रवीन्द्रनाथ टैगोर के 1903 के उपन्यास चोखेर बाली पर आधारित है। रितुपर्णाे घोष द्वारा निर्देशित, इस फिल्म में ऐश्वर्या राय को बिनोदिनी और राइमा सेन को आशालता के किरदार में दिखाया गया है।

आशालता और बिनोदिनी एक-दूसरे को चोखेर बाली, या आंख में किरकिरी के रूप में संदर्भित करते हैं। इस फिल्म में महेंद्र के रूप में प्रोसेनजीत चटर्जी, महेंद्र की मां राजलक्ष्मी के रूप में लिली चक्रवर्ती, बिहारी के रूप में टोटा रॉय चौधरी, महेंद्र के सबसे अच्छे दोस्त, और एक कैमियो भूमिका में स्वस्तिका मुखर्जी कलाकारों के रूप में शामिल हैं।

बीसवीं सदी की शुरुआत में बनी इस फ़िल्म में बिनोदिनी एक युवा बंगाली लड़की है, जो शादी के तुरंत बाद अपने बीमार पति की मृत्यु के बाद विधवा हो जाती है। कुछ महीनों के लिए अपने गांव लौटने पर, वह अपनी एक मौसी को देखती है – राजलक्ष्मी नाम की एक और बंगाली विधवा। वे बातचीत करते हैं और सहमत होते हैं कि अगर बिनोदिनी उनके और उनके परिवार के साथ उनके उत्तरी कोलकाता स्थित घर में रहने आए तो यह अच्छा होगा।

राजलक्ष्मी का बेटा महेंद्र, जो कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहा एक महत्वाकांक्षी डॉक्टर है, बिनोदिनी की तस्वीर देखने वाले पहले लोगों में से एक था, जब उसे भावी दुल्हन के रूप में प्रस्तावित किया गया था। उसने उसे शादी के लिए तैयार नहीं होने के कारण मना कर दिया – जबकि वह वास्तव में उसकी उपलब्धियों के सामने असुरक्षित था। जब बिनोदिनी राजलक्ष्मी के साथ आती है, तो महेंद्र और उसकी नई दुल्हन आशालता हमेशा अकेले समय निकालने की कोशिश करते हैं। बिनोदिनी आशालता से दोस्ती करती है और वे एक-दूसरे को चोखेर बाली के उपनाम से बुलाते हैं। आशालता के प्रति महेंद्र का मोह उसे घर में मांसाहारी भोजन पकाने के लिए प्रेरित करता है, जिसका रूढ़िवादी वैष्णव राजलक्ष्मी विरोध करती है और घर छोड़कर बनारस चली जाती है और वहां अपना बाकी जीवन बिताती है। जल्द ही महेंद्र को यह समझ आने लगता है कि अंग्रेजी बोलने वाली, मजाकिया बिनोदिनी उसकी परंपरावादी, भोली गृहिणी आशालता से ज्यादा उसकी पसंद है। महेंद्र भी असुरक्षित महसूस करता है जब आशालता महेंद्र के बचपन के दोस्त बिहारी की शारीरिक विशेषताओं की प्रशंसा करती है और बिहारी बदले में बिनोदिनी की सुंदरता की प्रशंसा करता है।

बिहारी को परेशान करने के लिए महेंद्र बिनोदिनी के साथ विवाहेतर संबंध बनाता है। आशालता को जल्द ही इस बारे में पता चलता है और वह महेंद्र को छोड़कर बनारस में राजलक्ष्मी के साथ रहने लगती है। संबंध के बारे में पता चलने पर राजलक्ष्मी बिनोदिनी को घर से बाहर निकाल देती है। बिनोदिनी बिहारी को ढूंढती है और उससे शादी करने की विनती करती है, लेकिन परंपरावादी बिहारी उसे अस्वीकार कर देता है। बिनोदिनी कोलकाता छोड़कर अपने गांव चली जाती है। महेंद्र उसका पीछा करता है और अपने रिश्ते को सुधारने का वादा करता है, जिसे वह अस्वीकार कर देती है। वह उससे वादा करता है कि वह उसे बिहारी के पास ले जाएगा, जो राजलक्ष्मी के खराब स्वास्थ्य के बारे में जानकारी मिलने पर बनारस गया था। बनारस में महेंद्र को राजलक्ष्मी की मौत के बारे में पता चलता है। वह आशालता से माफी मांगता है और उसे वापस कोलकाता ले जाता है। बाद में बिनोदिनी भी बिहारी से मिल जाती है।

इस अवसर पर सभागार में, हिमांशु आहूजा, अरुण कुमार असफल,ओशीन सरकार, कुलभूषण नैथानी, अपर्णा वर्धन,चन्द्रशेखर तिवारी, दयानन्द अरोड़ा, शेलेन्द्र कुमार, मनोज कुमार, डॉ. वी.के. डोभाल व सुंदर  बिष्ट, सहित अनेक फिल्म से जुड़े लोग, फिल्म प्रेमी, लेखक, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी, पुस्तकालय के सदस्य तथा बड़ी संख्या में युवा पाठक उपस्थित रहे।