ग्रीष्म कला उत्सव-1 का तीसरा दिन युवा संवाद और वृतचित्रों का प्रदर्शन
देहरादून, 10मई, 2024। आज तीसरे दिन दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से सुबह के सत्र में पुस्तकालय के युवा छात्रों के लिए एक सामूहिक परिचर्चा आयोजित की गई। यह पपरिचर्चा ‘कला और संस्कृति को बढ़ावा देना उपयोगहीन है और केवल धन की खपत होती है और कोई वास्तविक मौद्रिक रिटर्न नहीं मिलता है।‘ विषय पर आधारित थी। इसमें प्रतिभागियों ने इसके सहमति और असहमति पक्ष पर आठ युवा छात्रों ने अपने विचार रखे। सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु आहूजा, इतिहासकार डाॅ.योगेश धस्माना इस परिचर्चा के निर्णायक रहे। पर्यावरण के मुद्दों पर कार्य करने वाली इरा चैहान ने परिचर्चा का संचालन किया। इसमें सभी युवाओं ने बेबाक तरीके से अपनी बात रखी। इसमें सर्वश्रेष्ठ तीन युवाओं का चयन किया गया। संवाद में सभी प्रतिभागियों को दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से प्रमाण पत्र दिये जायेंगे।
शाम के सत्र में सामुदायिक थिएटर और सबाल्टर्न नृत्य पर आधारित तीन फिल्मों के वृतचित्रों का प्रदर्शन किया गया। इसमें पहली फिल्म ‘जननीज जूलियट‘ पांडिचेरी स्थित थिएटर समूह, इंडियनोस्ट्रम की यात्रा का अनुसरण करवाती है। जाति व वर्ग की बाधाओं से गुजरते और समझते हुए हैं यह फिल्म बताने का प्रयास करती है कि महिलाओं की स्वतंत्रता और उनका प्रेम किस तरह प्रभावित होता हैं। शास्त्रीय रोमियो जूलियट प्रेम कहानी के एक समकालीन संस्करण की संकल्पना करते हैं। इसकी अवधि 53 मिनट की है और पंकज ऋषि कुमार ने इसे र्निदेशित किया है।
दूसरी फिल्म ‘द जर्नी फ्राॅम सादिर टू भरतनाट्यम की अवधि 26 मिनट की थी। इसे विवेका चौहान द्वारा र्निदेशित किया है। माना जाता है कि किसी समय किये जाने वाला मंदिर नृत्य भरतनाट्यम देवदासियों का विषय क्षेत्र था जो अब शहरी महिलाओं द्वारा पेशेवर तौर पर किया जाता है। अब यह इतिहास का एक प्रतीक बन गया है। अब इस प्रक्रिया में उन पहलुओं को मिटा सा दिया गया है जिन्होंने इसके जन्म और विकास में योगदान दिया था। इस वृतचित्र में सबाल्टर्न नृत्य शैली के शहरी, ब्राह्मणवादी नृत्य शैली में परिवर्तन के कारण जो कुछ खो गया है और जो कुछ प्राप्त हुआ है, उसकी रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।
तीसरी प्रदर्शित वृतचित्र फिल्म ‘कूथु‘ 53 मिनट अवधि की थी। और संध्या कुमार ने इसे र्निदेशित किया है। पारंपरिक रूप से स्थानीय ग्रामदेवी को प्रसन्न करने के लिए हाशिए पर चली गयी जनजातियों द्वारा कुथु का अभ्यास करना आवश्यक था। दो कुथु मास्टर्स के साथ किया गया साक्षात्कार कला के विकास का पता लगाने में मदद करते हैं। पहले हैं कट्टाईकुट्टू नाम के कलाकार और शिक्षक पी राजगोपाल, जो अपनी पत्नी और विद्वान हने एमडी ब्रुइन के साथ कांचीपुरम में कटाईकुट्टू गुरुकुलम चलाते हैं। गुरुकुलम कला के रूप को संस्थागत बनाने और इसके पूर्व और वर्तमान अकादमिक अध्ययन की पेशकश की पहल करने वाले प्रयासरत लोगों में से एक है।
दूसरे कुथु मास्टर संबंदन थंबिरन हैं, जो एक अनुभवी कलाकार थेरुकुथु कन्नप्पा थंबिरन के बेटे हैं। यह वृतचित्र इन अभ्यासकर्ताओं और उनके छात्रों का अवलोकन करने का यत्न करती है और उनके रिहर्सल और प्रदर्शन को करीब से देखती है। कुथु की यह कहानी इसके सौंदर्यशास्त्र और परंपरा के इर्द-गिर्द जाति और लिंग की राजनीति को एक साथ जोड़ने का प्रयास करती है।
आज के इन सत्रों में दून पुस्तकालय एव शोध केंद्र के अध्यक्ष प्रो.बी के जोशी , विजय पाहवा, डॉ.अतुल शर्मा, डॉ. नंदकिशोर हटवाल, विनोद सकलानी, अपर्णा वर्धन मनमोहन चड्ढा आदि के अलावा रंगमंच व फिल्म से जुड़े लोग, साहित्यकार, लेखक,, सामाजिक कार्यकर्ता और पुस्तकालय के सदस्य सहित बड़ी संख्या में युवा छात्र उपस्थित रहे।