‘हाशिये का हिमाल’ का लोकार्पण व उस पर विमर्श
दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से चर्चित पुस्तकों पर सार्थक बातचीत करने के उद्देश्य से समय -समय पर कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इसी क्रम में आज युवा कवि और साहित्यकार अनिल कार्की द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘हाशिए का हिमाल‘ पुस्तक का लोकार्पण और उस पर विमर्श का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में समय साक्ष्य प्रकाशन की भी सहभागिता रही। लैंसडाउन चौक स्थित दून पुस्तकालय के सभागार में युवा कवि व अनुवादक नागेन्द्र गंगोला ने अनिल कार्की से बातचीत की। वरिष्ठ कवि व समालोचक राजेश सकलानी ने ‘हाशिए का हिमाल‘ कविता संग्रह पर अपनी विश्लेष्णात्मक समीक्षा प्रस्तुत की। इस कविता संग्रह में उत्तराखण्ड के 24 युवा कवियों के बेहतरीन कविताओं का संकलन है जिसे देहरादून के समय साक्ष्य प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
इस बातचीत में नागेन्द्र गंगोला के पूछे गये सवालों के जबाब में अनिल कार्की का कहना था कि हर साहित्य का सीधा सम्बन्ध समाज से होता है और समाज मात्र संरचना नहीं है । ठीक उसी तरह जैसे कि हिमालय मात्र एक भौगोलिक संरचना नहीं अपितु नया बनता हुआ यह हिमालय अपने प्रारंभिक अवस्था से ही रहवासियों का चिर सहयात्री रहा है। इसेे और इसके रहवासियों को देखे जाने के तमाम नजरिए हैं । इस हिमालय ने भारतीय समाज, जन, धर्म, मिथक, संस्कृति को अपनी तरह से प्रभावित किया है। हिमालय की प्रासंगिकता के सन्दर्भ में उन्हांेनें कहा कि हिमालय आगे भी नई प्रासंगिकताओं व नए संदर्भो के साथ वर्तमान बना रहेगा क्योंकि पहाड़ बीतते नहीं। हिमालय को देखे जाने और जीने में एक गहरा अंतर है।
कवि एवं समीक्षक राजेश सकलानी ने इस पुस्तक की विस्तार से समीक्षा करते हुए कहा कि इस संग्रह के माध्यम से 24 नए कवियों से परिचय हुआ। एक साथ इतने कवियों को समेटकर संपादक ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। इस संग्रह में हम हिमालय के दूर दराज इलाकों की आवाजें सुन सकते हैं।
इस संग्रह में उत्तराखंड के युवा कवि संदीप रावत, सोनिया गौड़, लोकेश डसीला, प्रकृति करगेती, लवराज, स्वाति मेलकाली, मोहन मुक्त, नीलम पाण्डेय, प्रियंका गोस्वामी, रोहित जोशी, दर्पण साह, दीपिका ध्यानी, नागेन्द्र गंगोला, खेमकरण सोमन, मनोज कंडियाल, अंकिता रासुरी, अस्मिता पाठक, नीकिता नैथानी, प्रेमा गड़कोटी, सुमित रिंगवाल, पंकज भट्ट, अनिता मैठाणी, दिव्या और अनिल कार्की की कविताएं शामिल हैं। संग्रह का संपादन अनिल कार्की द्वारा किया गया है।
‘हाशिये का हिमाल’ पुस्तक 40 वर्ष के उम्रदराज हिमालयी युवा कवियों का एक साझा संग्रह है। कह सकते है एक साझा आवाज है। बतौर संपादक अनिल कार्की इस संकलन के बहानेयुवा कविता में उभरती आवाजों का स्वागत करते हैं । साहित्य कलात्मक रूप से विचारों की ही अभिव्यक्ति है। यह कवि खुद को देखे जाने की अभिजातीय दृष्टि के बोझ तले दबा हुआ महसूस करता है। पाठक अगर इस संकलन को पढ़ेंगे तो पायेंगे इस संकलन में पुराने हो चुके या चमक खो चुके रूढ़ प्रतीकों, बिम्बों, भाषा से इतर जाकर कवियों ने अपने हिमाल और उसके हाड़ मास को यथार्थ में भोगा और उसे लिखा है। इस संकलन के कवि, अपनी ही भाषा में हिमाल और खुद को देखे जाने के हिमायती है। उनकी भाषा में चटक और ताजातरीन सन्दर्भ हैं, नए बिम्ब है, प्रतीक तो जैसे उन्होंने कई बार उलट के रख दिए हैं । इसके अलावा वैश्वीकरण के दौर में स्थानिकताएं उनके टोन उनकी रचना दृष्टि नये उभरते अस्मिताई विमर्श भी इस कविता संग्रह में देखे जा सकते हैं।
डॉ. अनिल कार्की जनपद पिथौरागढ़ के पूर्वी राम गंगा के किनारे बसे पीपलतड़ मुवानी गाँव में जन्मे हैं। कहानी संकलन ‘भ्यास कथा तथा अन्य कहानियाँ‘ (2015), कविता संकलन ‘उदास बखतों का रमोलिया‘ (2015), ‘एक तारो दूर चलक्यो‘ गुमनाम कुमाउनी लोकगायक भानुराम सुकोटी की रचनाओं का संकलन व संपादन (2016), ‘धार का गिदार‘ कहानी संग्रह (2016), ‘लोक पहरुवे‘ उत्तराखण्डी लोक कलाकारों पर लिखे गये महत्वपूर्ण लेखों का संपादन (2016), कविता संकलन ‘पलायन से पहले‘ (2018), संस्मरण ‘अपनी माटी अपना बचपन‘ (2020), कविता संकलन ‘सुन सुवा बणखण्डी‘ (2022), कविता संकलन ‘नदी भेड़ नहीं होती‘ (2022), और कुमाउनी लोक संस्कृति विविध आयाम (2023) इनकी प्रकाशित कृतियां हैं।हंस, वागर्थ, नया ज्ञानोदय, इन्द्रप्रस्थ भारती, अक्षरपर्व व उत्तरा आदि पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित। 2014 में कहानी संकलन पर अनुनाद सम्मान। लोकवार्ताओं के संग्रहण व शोध के साथ ही प्राथमिक शिक्षा व ग्रामीण कृषि व समावेशी विकास पर काम। डाॅ. अनिल कार्की वर्तमान में उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में कार्यरत हैं।
बातचीत के दौरान कुछ चयनित कविताओं का पाठ भी किया गया और अन्त में सभागार में उपस्थित लोगों ने संकलन की कविताओं और उसकी सामयिकता पर सवाल-जबाब भी किये।कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने सबका स्वागत किया और , निकोलस हाॅफलैण्ड ने अन्त में सबका आभार व्यक्त किया।
इस दौरान समय साक्ष्य के प्रबन्धक प्रवीन भट्ट व रानू बिष्ट, बिजू नेगी, शोध सहायक सुन्दर सिंह बिष्ट, डाॅ. राजेश पाल व डाॅ. मनोज पंजानी सहित अनेक साहित्यकार, पुस्तक प्रेमी, लेखक व पर्यावरण प्रेमी, प्रबुद्ध लोग सहित दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के युवा पाठक व सदस्य उपस्थित थे।