अब्बास तैयबजी के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान विषय पर श्री अनिल नौरिया की वार्ता

अब्बास तैयबजी के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान विषय पर श्री अनिल नौरिया की वार्ता

दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आज शनिवार, 02 मार्च, 2024 को ‘बड़ौदा से मसूरी तक अब्बास तैयबजी : स्वतंत्रता संग्राम में अग्रसर’ विषय पर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता श्री अनिल नौरिया ने ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी सभागार में उपस्थित रहे लोगों के मध्य साझा की।
उल्लेखनीय बात है कि उनकी यह बातचीत भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता पर चल रही श्रृंखला का एक क्रमिक हिस्सा है। अपनी बातचीत में श्री अनिल नौरिया ने विस्तार से बताते हुए कहा कि अब्बास तैयबजी (1 फरवरी 1854 – 9 जून 1936) गुजरात के एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और महात्मा गांधी के सहयोगी थे। उन्होंने बड़ौदा राज्य के मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया।
अब्बास तैयबजी का जन्म बड़ौदा राज्य में हुआ था, जहाँ उनके पिता महाराजा की सेवा में थे। उनकी शिक्षा इंग्लैंड में हुई, जहां वे ग्यारह वर्षों तक रहे। उनके पिता के बड़े भाई बदरुद्दीन तैयबजी थे, जो बैरिस्टर बनने वाले पहले भारतीय, बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट के जज और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शुरुआती, वफादार अध्यक्ष थे। इंग्लैंड में शिक्षित बैरिस्टर के रूप में, तैयबजी को बड़ौदा राज्य की अदालत में न्यायाधीश के रूप में नौकरी मिल गई। वह सेवानिवृत्ति से पहले न्यायपालिका में बड़ौदा राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने। वह महिलाओं के अधिकारों के समर्थक थे, महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक सुधार का समर्थन करते थे। तैयबजी ने महात्मा गांधी के साथ भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।वह गांधीजी के वफादार अनुयायी बन गए थे।
देश भर में यात्रा तीसरी श्रेणी के रेलवे डिब्बे में करना,साधारण धर्मशालाओं और आश्रमों में,ज़मीन पर सोना और मीलों पैदल चलना अहिंसक अवज्ञा का उपदेश देना ब्रिटिश भारतीय सरकार के खिलाफ आवाज उठाना जैसी बातों को उन्होंने काफी समय तक जारी रखा।
महात्मा गांधी ने ब्रिटिश नमक कर के खिलाफ देशव्यापी अहिंसक विरोध का विकल्प चुना। कांग्रेस के अधिकारियों को विश्वास था कि गांधी को शीघ्र ही गिरफ्तार किया जा सकता है । तब गांधी जी की गिरफ्तारी की स्थिति में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व करने के लिए उन्होंने तैयबजी को गांधी के तत्काल उत्तराधिकारी के रूप में चुना। 4 मई 1930 को, दांडी तक नमक मार्च के बाद, गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया और तैयबजी को नमक सत्याग्रह के अगले चरण का प्रभारी बनाया गया।
तारीख, 7 मई, 1930 को तैयबजी ने सत्याग्रहियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए धरासना सत्याग्रह शुरू किया और गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा को अपने साथ लेकर मार्च शुरू किया। एक प्रत्यक्षदर्शी ने टिप्पणी की, “इस ग्रैंड ओल्ड मैन को अपनी बहती हुई बर्फ-सफेद दाढ़ी के साथ स्तंभ के शीर्ष पर मार्च करते हुए और बावजूद इसके गति बनाए रखते हुए देखना एक बहुत ही गंभीर दृश्य था।”
12 मई को, धरसाना पहुंचने से पहले, तैयबजी और 58 सत्याग्रहियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। उस समय, सरोजिनी नायडू को धरसाना सत्याग्रह का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया गया था। अनेक संग्रामियों पर बर्बरता पूर्ण कार्यवाही किये जाने से इस घटना ने दुनिया भर का ध्यान भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की ओर आकर्षित किया।
तैयबजी की मृत्यु 9 जून 1936 को मसूरी, ( उत्तराखंड ) में हुई। उनकी मृत्यु के बाद, गांधी जी ने हरिजन अखबार में ‘ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ गुजरात’ शीर्षक से एक लेख लिखा था। इस आलेख में उन्होंने तैयबजी की निम्नलिखित प्रशंसा करते हुए लिखा “जिसने अपनी उम्र और जीवन की कठिनाइयों को कभी नहीं जाना, उसके लिए कारावास भुगतना कोई मज़ाक नहीं था। लेकिन उसके विश्वास ने हर बाधा पर विजय पा ली… वह मानवता का एक दुर्लभ सेवक था। वह भगवान को दरिद्रनारायण के रूप में मानते थे। उनका मानना था कि भगवान सबसे साधारण कुटिया में और पृथ्वी के वंचित लोगों में पाए जाते हैं… उनका जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरणा है।
अनिल नौरिया ने अर्थशास्त्र विषय का अध्ययन किया है। वर्तमान में वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। वह नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय, नई दिल्ली में वरिष्ठ फैलो (2013-2015) रहे। 1970 के दशक से वे लगातार लिख रहे हैं। अक्सर धर्मनिरपेक्षता, राज्य तथा समकालीन इतिहास पर उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित किया है। लेखन के रुप में उन्होंने विभिन्न पुस्तकों और पत्रिकाओं में योगदान दिया है, इनमें इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (मुंबई), मेनस्ट्रीम (नई दिल्ली), मंथली रिव्यू (न्यूयॉर्क), कल्चर एट पाॅलिटिक (डकार) और नतालिया (पीटरमैरिट्सबर्ग)आदि शामिल हैं। पिछले दो दशकों में उनके लेखन में द अफ्रीकन एलीमेंट इन गांधी, (2006), फ्रीडम, रेस एंड फ्रैंकोफोनी: गांधी एंड द कंस्ट्रक्शन ऑफ पीपलहुड, (2009), साउंडिंग्स इन किंड्रेड स्ट्रगल्स: द इजिप्टियन वॉयस इन गांधी, (2011), गांधी एण्ड सम काॅन्टमपाॅररी अफ्रीकन लीर्डस फ्राॅम क्वाजुलु-नटाल(2012) इंग्लिश एंटी-इंपीरियलिज्म एंड द वेरायड लाइट्स ऑफ विली पियर्सन, (2014), नाॅन वाॅयलैंट एक्शन एण्ड द शोसियलिस्ट रेडिकलिज्मः नरेन्द्रदेव इन इन्डियाज फ्रीडम मूवमेन्ट्स (2015),द पार्टिशन आॅफ इण्डिया: द टारगेटिंग आॅफ नेहरु एण्ड द काॅग्रेस (2016), हरमन कालेनबच एण्ड सोनजा स्लेसिन: ग्लिंपस आॅफ सम लिथ्नियन एण्ड इस्ट यूरोपियन लिंक्स इन गांधीज साउथ अफ्रीकन स्ट्रगल एण्ड आफ्टर (2017) गांधी एण्ड वेस्ट अफ्रीका एक्सफ्लोरिंग द एफिनिटिज (2017), आॅन गांधीज रिफलक्शनस ड्यूरिंग हिज लास्ट डेजः सम सोशिया इकोनाॅमिक एण्ड पाॅलिटिकल आस्पैक्ट(2019) और भारत में असहयोग आंदोलन की शताब्दी पर सविनय अवज्ञा की अवधारणाओं की खोज, (2021) आदि कृतियां शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि अनिल नौरिया राजनीतिक और आर्थिक शालीनता के लिए स्थापित महावीर त्यागी फाउंडेशन के संस्थापक ट्रस्टी हैं।
कार्यक्रम के दौरान पूर्व प्रमुख सचिव उत्तराखण्ड शासन, श्रीमती विभापुरी दास, डॉ.रेनू शुक्ला, प्रोग्राम एसोसिएट, चन्द्रशेखर तिवारी,सामाजिक चिंतक बिजू नेगी,डॉ. विजय शंकर शुक्ला,कर्नल विजय कुमार दुग्गल, सुंदर सिंह बिष्ट, आशीष गर्ग, जगदीश बाबला,डॉ.मनोज पँजानी, विनोद सकलानी,विजय बहादुर, सहित अनेक प्रबुद्ध लोग,इतिहास में रुचि रखने वाले अध्येता, साहित्यकार, पुस्तक प्रेमी, लेखक व पर्यावरण प्रेमी, सहित दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के युवा पाठक व अनेक सदस्य उपस्थित थे।