
प्रोफे.मनु भगवान की लिखी जीवनी ‘विजय लक्ष्मी पंडित’ पर चर्चा का आयोजन
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र पुस्तक वाचन और चर्चा, संगीत, वृत्तचित्र फिल्म, लोक परंपराओं और लोक कलाओं, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, आम नागरिक मुद्दों व प्रौद्योगिकी पर केंद्रित अपने कैलेंडर के आधार पर समय-समय पर कार्यक्रम करते रहता है। आज की चर्चा इसी श्रृंखला का हिस्सा है।
इसी क्रम में आज ,27 दिसंबर, 2023 को देहरादून में सायं चार बजे दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से मनु भगवान द्वारा लिखी जीवनी ‘विजय लक्ष्मी पंडित’ का लोकार्पण किया गया। लोकार्पण के बाद इस पुस्तक पर एक चर्चा भी हुई। जिसमें लेखक मनु भगवान के साथ गीता सहगल ने गहन बातचीत की।इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर सुप्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्य की लेखिका नयनतारा सहगल उपस्थित रहीं। जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तराखण्ड शासन में पूर्व प्रमुख सचिव रह चुकीं विभा पुरी दास ने की।
उल्लेखनीय है कि बीसवीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध महिलाओं में से एक मैडम विजया लक्ष्मी पंडित के जीवनी लेखक मनु भगवान हैं। विजय लक्ष्मी पंडित की कहानी आधुनिक दुनिया से जुड़ी हुई है। वह भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री, संयुक्त राष्ट्र में पहली राजदूत और सोवियत संघ में पहली राजदूत रहीं थीं। वह संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली महिला राजदूत और संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला निर्वाचित अध्यक्ष भी रही थीं। और फिर भी उनका प्रभाव इन औपचारिक भूमिकाओं से कहीं आगे तक विस्तारित था। वह आधुनिक वैश्विक व्यवस्था की स्थापना के केंद्र में थीं, सबसे प्रभावशालियों में से एक बन गईं। उन्होंने शांति और न्याय की अंतर्राष्ट्रीय आवाज़ें उठाईं, और कई क्षेत्रों में दुनिया भर में महिलाओं के लिए मार्ग भी प्रशस्त किया। यही कारण था कि एलेनोर रूज़वेल्ट ने उन्हें “अब तक की सबसे उल्लेखनीय महिला” कहा। आठ साल के शोध के आधार पर, सात देशों की पांच भाषाओं में सामग्री और चालीस से अधिक अभिलेखागार का उपयोग करके दिसंबर 2023 में पेंगुइन/एलन लेन इंडिया द्वारा प्रकाशित, इस पुस्तक को विजया लक्ष्मी पंडित की एक ठोस जीवनी के रूप में जाना जाता है।
जीवनी के लेखक मनु भगवान आधुनिक भारत के विशेषज्ञ हैं, जो बीसवीं सदी के उत्तर-औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक काल पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसमें मानव अधिकारों, (अंतर) राष्ट्रवाद और संप्रभुता के प्रश्नों में विशेष रुचि है। वह हंटर कॉलेज और ग्रेजुएट सेंटर, सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क में इतिहास, मानवाधिकार और सार्वजनिक नीति के प्रोफेसर हैं, जहाँ वह राल्फ बंचे इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज़ में सीनियर फेलो भी हैं। स्नातक स्तर पर वह आधुनिक विश्व इतिहास और आधुनिक दक्षिण एशियाई इतिहास पर व्याख्यान देते हैं, और गांधी, आधुनिक भारत और हिंसा और जातीय संघर्ष पर सेमिनार आयोजित करते हैं। उनकी स्नातक कक्षाएँ मानवाधिकार, अंतर्राष्ट्रीयता और जीवनी पर केंद्रित हैं।
नयनतारा सहगल अंग्रेजी साहित्य की स्थापित उपन्यासकार तथा राजनीतिक टिप्पणीकार हैं। इन्होंने नौ उपन्यास और आठ गैर-काल्पनिक रचनाएँ प्रकाशित की हैं। अंग्रेजी में अंतरराष्ट्रीय पाठक वर्ग पर छाप छोड़ने वाले पहले भारतीय लेखकों में से एक हैं।उन्होंने 1986 में प्लान्स फॉर डिपार्चर के लिए कॉमनवेल्थ राइटर्स प्राइज (यूरेशिया) जीता, जबकि रिच लाइक अस ने 1985 में सिंक्लेयर फिक्शन पुरस्कार और 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता। उन्होंने अंग्रेजी के लिए साहित्य अकादमी सलाहकार बोर्ड के सदस्य के रूप में योगदान दिया; वुडरो विल्सन इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्कॉलर्स, नेशनल ह्यूमैनिटीज़ सेंटर और बंटिंग इंस्टीट्यूट, यूएसए के फेलो रहे हैं। उन्होंने 1990 और 1991 में कॉमनवेल्थ राइटर्स प्राइज़ की जूरी में भी काम किया। 1990 में उन्हें अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज का फेलो चुना गया। 1997 में उन्हें लीड्स विश्वविद्यालय द्वारा साहित्य के लिए मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था, और 2002 में वेलेस्ले कॉलेज द्वारा एलुम्ना उपलब्धि पुरस्कार दिया गया था, जो उन्हें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की रक्षा में बहादुरी से सामना करने के लिए सम्मानित करता था।
विभा पुरी दास भारत सरकार में सचिव रह चुकी हैं, इनका उत्तराखंड शासन के साथ भी एक लंबा जुड़ाव रहा है। उन्होंने उस समय देहरादून के जिला मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य किया था जब विजय लक्ष्मी पंडित देहरादून की निवासी थीं।
गीता सहगल एक नारीवादी कार्यकर्ता और वृत्तचित्र फिल्म निर्माता हैं। उन्होंने दहेज हत्या, सती प्रथा, अपने पति की हत्या के लिए जेल में बंद किरणजीत अहलूवालिया के मामले, सलमान रुश्दी मामले और 1971 के दौरान बांग्लादेश में मौत के दस्तों पर द वॉर क्राइम फाइल पर फिल्में बनाई हैं।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में श्री निकोलस हॉफलैण्ड ने दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से मंचासीन अतिथियों और सभागार में उपस्थित लोगों का स्वागत किया और प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने अंत में अतिथियों और श्रोताओं को धन्यवाद दिया। इस मौके पर अनिल बहुगुणा, एन एस नपलच्याल, डॉ अतुल शर्मा, एलन सीली, रवि चोपड़ा, अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा, आलोक बी लाल,सुन्दर सिंह बिष्ट, सहित कई लेखक, बुद्धिजीवी, और दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के युवा पाठक मौजूद रहे।