बादशाह खान : सीमांत गांधी की अद्भुत जीवनी’

बादशाह खान : सीमांत गांधी की अद्भुत जीवनी’

दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आज शनिवार, 26 अक्टूबर, 2023 को बादशाह खान : सीमांत गांधी की अद्भुत जीवनी’ पर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता श्री अनिल नौरिया ने वार्ता के माध्यम से बहुत महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी  उपस्थित श्रोताओं के सम्मुख साझा की। 

 उनकी यह वार्ता भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता पर चल रही श्रृंखला का एक क्रमिक हिस्सा है। अपनी वार्ता में श्री अनिल नौरिया ने विस्तार से बताते हुए कहा कि खान अब्दुल गफ्फार खान (1890-1988), आजीवन शांतिवादी, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के खिलाफ पठानों को संगठित किया।  यह बात उल्लेखनीय है कि उन्हें ‘फ्रंटियर गांधी’, बादशाह खान, बाचा खान और फख्र-ए-अफगान के नाम से भी जाना जाता था। उनके राजनीतिक व्यक्तित्व में ये सभी नाम आज भी  रचे-बसे हुए हैं।

1890 में वर्तमान पाकिस्तान के उतमानजई में एक धनी पश्तून परिवार में जन्मे। हालाँकि वह ज़मींदार मोहम्मदजई कबीले से आते थे, लेकिन गरीबी को खत्म करने और शिक्षा और हिंदू-मुस्लिम सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए अपना जीवन और संसाधन लगा दिए। उनका सबसे बड़ा योगदान 1929 में ‘खुदाई खिदमतगार’ या भगवान के सेवक आंदोलन था, जो ब्रिटिश राज के खिलाफ बड़े पैमाने पर लामबंदी की शुरुआत थी।

अनिल नौरिया ने अपने व्याख्यान में आगे  खान अब्दुल गफ्फार खान के जीवन के साथ ही उनके राजनैतिक पक्षों  यथा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनके और खुदाई खिदमतगार के दमन तक, महात्मा गांधी के साथ साझा विचारधाराएं और घनिष्ठ मित्रता, बन्नू प्रस्ताव और 1947 के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत जनमत संग्रह का बहिष्कार जैसे विविध महत्वपूर्ण प्रसंगों पर गहन प्रकाश डाला।

अनिल नौरिया एक परिचय

अनिल नौरिया ने अर्थशास्त्र विषय का अध्ययन किया है। वर्तमान में वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। वह नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय, नई दिल्ली में वरिष्ठ फैलो (2013-2015) रहे। 1970 के दशक से वे लगातार लिख रहे हैं। अक्सर धर्मनिरपेक्षता, राज्य तथा समकालीन इतिहास पर उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित किया है।  लेखन के रुप में उन्होंने विभिन्न पुस्तकों और पत्रिकाओं में योगदान दिया है, इनमें इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (मुंबई), मेनस्ट्रीम (नई दिल्ली), मंथली रिव्यू (न्यूयॉर्क), कल्चर एट पाॅलिटिक (डकार) और नतालिया (पीटरमैरिट्सबर्ग)आदि शामिल हैं। पिछले दो दशकों में उनके लेखन में द अफ्रीकन एलीमेंट इन गांधी, (2006), फ्रीडम, रेस एंड फ्रैंकोफोनी: गांधी एंड द कंस्ट्रक्शन ऑफ पीपलहुड, (2009), साउंडिंग्स इन किंड्रेड स्ट्रगल्स: द इजिप्टियन वॉयस इन गांधी, (2011), गांधी एण्ड सम काॅन्टमपाॅररी अफ्रीकन लीर्डस फ्राॅम क्वाजुलु-नटाल(2012)  इंग्लिश एंटी-इंपीरियलिज्म एंड द वेरायड लाइट्स ऑफ विली पियर्सन, (2014), नाॅन वाॅयलैंट एक्शन एण्ड द शोसियलिस्ट रेडिकलिज्मः नरेन्द्रदेव इन इन्डियाज फ्रीडम  मूवमेन्ट्स (2015),द पार्टिशन आॅफ इण्डिया: द टारगेटिंग आॅफ नेहरु एण्ड द काॅग्रेस (2016), हरमन कालेनबच एण्ड सोनजा स्लेसिन: ग्लिंपस आॅफ सम लिथ्ुानियन एण्ड इस्ट यूरोपियन लिंक्स इन गांधीज साउथ अफ्रीकन स्ट्रगल एण्ड आफ्टर (2017) गांधी एण्ड वेस्ट अफ्रीका एक्सफ्लोरिंग द एफिनिटिज (2017), आॅन  गांधीज रिफलक्शनस ड्यूरिंग हिज लास्ट डेजः सम सोशिया इकोनाॅमिक एण्ड पाॅलिटिकल आस्पैक्ट(2019) और भारत में असहयोग आंदोलन की शताब्दी पर सविनय अवज्ञा की अवधारणाओं की खोज, (2021) आदि कृतियां शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि अनिल नौरिया राजनीतिक और आर्थिक शालीनता के लिए स्थापित महावीर त्यागी फाउंडेशन के संस्थापक ट्रस्टी हैं।

 कार्यक्रम के दौरान इतिहासकार डॉ.योगेश धस्माना, बिजू नेगी, डॉ.अतुल शर्मा, जितेंद्र नौटियाल, आर पी नैनवाल व डॉ. विजय शंकर शुक्ला, हिमांशु, निकोलस हॉफ़लैंड सहित अनेक प्रबुद्ध लोग,इतिहास में रुचि रखने वाले अध्येता, साहित्यकार, पुस्तक प्रेमी, लेखक व पर्यावरण प्रेमी, सहित दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के युवा पाठक व सदस्य उपस्थित थे।