बंगाल पुनर्जागरण के अंतिम स्तंभ थे सत्यजीत रे

बंगाल पुनर्जागरण के अंतिम स्तंभ थे सत्यजीत रे

दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आज सायं दून पुस्तकालय के सभागार में ‘सत्यजीत रे का यथार्थ’ विषय पर  डॉ.मनोज पंजानी से नसीम बानो ने बातचीत की।

डॉ. मनोज पंजानी ने  इस बातचीत में सत्यजीत रे को बंगाल पुनर्जागरण का अंतिम स्तंभ बताया। बंगाल पुनर्जागरण के सबसे पहले  व्यक्ति राजा राम मोहन राय थे। डॉ.पँजानी ने  विस्तार पूर्वक सत्यजीत रे की पारिवारिक पृष्ठभूमि में उनके दादा, उपेन्द्र किशोर रे, जो कि एक उद्यमी, चित्रकार तथा बाल साहित्य के लेखक थे, के बारे में बात की।  नसीम बानो ने बाल साहित्य में उनके विशेष स्थान के बारे में बात  करते हुए कहा कि ‘संदेश पत्रिका’ जो उनके दादा द्वारा निकाली जाती थी बाद में उसे सत्य जीत रे द्वारा पुनर्जीवित किया गया। इसमें जासूस फेलू दा और वैज्ञानिक प्रोफेसर शोंकू जैसे किरदार थे। नसीम बानो ने बच्चों के लिए उनके द्वारा बनाई गई फिल्मों के बारे में भी बात की। मनोज पंजानी ने कहा कि  सत्यजीत रे अधिकतर अपनी फिल्में साहित्यिक कृतियों को आधार बनाकर  बनाया करते थे। पटकथा लिखते समय उनके दिमाग में पूरी फिल्म की कल्पना होती थी। एक चित्रकार होने के नाते वह  तमाम दृश्यों के रेखाचित्र बनाया करते थे। लोकप्रिय फ़िल्मो में  उनके सहयोगी रहे  टीनू आनंद, जावेद सिद्दीकी और मंगेश देसाई जैसे व्यक्तियों पर भी बातचीत की गई।

बातचीत के दौरान सत्यजीत रे से सम्बंधित महत्वपूर्ण चित्रों  का प्रदर्शन भी स्लाइड शो के माध्यम से उपस्थित श्रोताओं के मध्य किया गया। बातचीत के उपरांत उपस्थित लोगों ने इस बारे में कई सवाल-जबाब भी किये।

इस  कार्यक्रम में  निकोलस हॉफ़लैंड , गोपाल थापा, डॉ. अतुल शर्मा,  प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी,हिमांशु आहुजा, सुंदर सिंह बिष्ट , नरेंद्र सिंह रावत, राकेश कुमार, विजय बहादुर यादव सहित देहरादून के अनेक फ़िल्म प्रेमी प्रबुद्वजन, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, और पुस्तकालय में अध्ययनरत  युवा पाठक भी उपस्थित रहे।