प्रो.इश्तियाक अहमद, प्रो.एमेरिटस,राजनीति विज्ञान,स्टाॅकहोम विश्वविद्यालय के साथ बातचीत

प्रो.इश्तियाक अहमद, प्रो.एमेरिटस,राजनीति विज्ञान,स्टाॅकहोम विश्वविद्यालय के साथ बातचीत

दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र द्वारा उत्तराखण्ड इंसानियत मंच के सहयोग से संस्थान के सभागार में 19 जून, 2023 को पंजाब तब और अब विषय पर प्रो.इश्तियाक अहमद, प्रोफेसर एमेरिटस, राजनीति विज्ञान, स्टाॅकहोम विश्वविद्यालय के साथ बातचीत का एक आयोजन किया गया इस चर्चा का संचालन उत्तराखण्ड इंसानियत मंच के डाॅ रवि चोपड़ा ने किया। प्रो. इश्तियाक अहमद तत्कालीन पंजाब प्रांत के विभाजन से पूर्व व बाद के सामाजिक आर्थिक व सांस्कृतिक परिवेश से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने दोनो पक्षों पर एक विशेष दृष्टि के साथ, विभाजन के लिए नेतृत्व करने वाले कई व्यापक मुद्दों को शामिल किया। यह विभाजन, पलायन, पुनर्वास और जीवन और आजीविका की बहाली के सामान्य पहलुओं पर केन्द्रित रहा।
उल्लेखनीय है कि प्रो. इश्तियाक अहमद का जन्म 1947 में लाहौर, पाकिस्तान में हुआ था और वर्तमान में वे स्वीडन के नागरिक हैं। कार्यक्रम में इश्तियाक को सुनकर महसूस किया गया कि धर्म के आधार पर राष्ट्र को बांटना कितना गलत है. आजादी के सालों बाद भी भारत में हिन्दू-मुस्लिम छोटे मोटे झगड़ों के बावजूद मिल कर साथ रह रहे हैं।
अपने बचपन की कुछ घटनाओं का उन पर असर रहा। उनके अनुसार 12 अगस्त 1947 को उनकी अम्मी घर की खिड़की से बाहर देख रही थीं, तो घर के दाहिने तरफ कुछ बदमाश किस्म के लोग जमा थे. उन्होंने बाईं तरफ से आने वाले एक सरदार पर हमले का प्रयास किया, लेकिन वो वहां से बचकर चले गए पर उसके बाद साइकिल में खाना बांधकर आते एक सरदार का इन लोगों ने बेरहमी से कत्ल कर दिया. इस हत्याकांड को देखने का मानसिक आघात उनकी अम्मी के साथ जीवन भर बना रहा। इसी तरह 1953 में पाकिस्तान में मार्शल लॉ के दौरान उनके घर के पास बंटवारे के दौरान अपने बेटे को खोने पर दिमागी रूप से कमजोर एक मुस्लिम व्यक्ति पर फौज द्वारा गोली मारने की घटना ने भी इश्तियाक पर गहरा असर डाला था।
एक सवाल के जबाब पर इश्तियाक अहमद ने कहा कि जिन्ना को चाहने वाले वो लोग जिन्होंने बंटवारे के दौरान हत्याएं की थीं, वो अब उन हत्याओं पर क्या सोचते हैं। उनका कहना था कि इन लोगों से आप यह सवाल अकेले पूछें तो उन्हें अपने द्वारा की इन हत्याओं पर दुख होता है, पर जहां यह सवाल कई लोगों के साथ होने पर पूछा जाए तो वह इस पर पछतावा नहीं करते। प्रो.इश्तियाक कहते हैं कि तब आगजनी करने वाले एक पाकिस्तानी व्यक्ति ने उनसे कहा कि मैं अल्लाह से माफी मांगता हूं, पाकिस्तान वह नहीं बन पाया जैसा हमने सोचा था। उस व्यक्ति ने कहा कि जब वह दिल्ली गया तो वहां लाहौर के एक हिन्दू ने उसे पहचान लिया और कहा कि कोई दिक्कत हो तो उसे अवश्य बताएं।
अपनी किताब लिखते हुए शोध कार्य में आई समस्याओं पर प्रोफेसर ने कहा कि विभाजन को लेकर जो दस्तावेज उपलब्ध हैं, वो 14 अगस्त तक अंग्रेजों के बनाए हुए थे। उन सरकारी दस्तावेजों को ढूंढना मुश्किल था और बंटवारे की कहानी 15 अगस्त के बाद शुरू हुई और 1947 साल के अंत तक खत्म भी हो गई. इसलिए शोध के लिए हमने गांवों में जाकर बात की और ट्रिब्यून की खबरों को जेड़ते हुए यह सब तैयार किया। अंग्रेजों ने जैसा उनका मन था, जिससे उन्हें आगे लाभ होने वाला था, उसे देखते हुए बंटवारे की नीति को बढ़ावा दिया।
उल्लेखनीय है कि डॉ. इश्तियाक अहमद ने स्टॉकहोम विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में पीएचडी प्राप्त की, जहां वे वर्तमान में प्रोफेसर एमेरिटस हैं, और 2010 में सेवानिवृत्त हुए थे। वर्ष 2015-2019 में वे गर्वनमैंट यूनिर्वसिटी लाहौर में तथा 2013-2015 लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (एलयूएमएस) विजिंटिग प्रोफेसर रहे। डॉ. इश्तियाक अहमद सिंगापुर के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन संस्थान (आईएसएएस) के मानद वरिष्ठ फैलो हैं।
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के अध्यक्ष और पूर्व मुख्य सचिव सुरजीत किशोर दास,सलाहकार प्रो. बी.के जोशी, निदेशक श्री एन.रविशंकर, सुप्रसिद्ध लेखिका नयनतारा सहगल, सहित देहरादून नगर के अनेक प्रबुद्वजन, साहित्यकार, सामाजिक काय्रकर्ता, लेखक रंगकर्मी सहित पुस्तकालय के अनेक युवा सदस्य भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में उपस्थित श्रोताओं ने प्रो. इश्तियाक अहमद से उनके शोध व लेखन के अलावा विभाजन से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण व सामयिक सन्र्दभों पर सवाल-जबाब भी किये। प्रो. इश्तियाक अहमद ने अगले दिन दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र का अवलोकन भी किया। अवलोकन के दौरान उन्होनें पुस्तकालय में पुस्तकों के संग्रह, लोक संग्रहालय व शोध व प्रकाशन के कार्यों को देखा और संस्थान के कार्यों की सराहना की।