पियर्सन के असाधारण जीवन और उस दौर पर वार्ता
दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आज शनिवार, 23 सितंबर, 2023 को विलियम ‘विली‘ विंस्टनली पियर्सन के ‘असामान्य जीवन और समय‘ पर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता श्री अनिल नौरिया की एक महत्वपूर्ण और रोचक वार्ता दून पुस्तकालय के सभागार में आयोजित की गई। यह वार्ता भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता पर चल रही श्रृंखला का एक खास हिस्सा है।
अनिल नौरिया ने अपने व्याख्यान में विलियम ‘विली‘ विंस्टनली पियर्सन (1881-1923) के बारे विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि ठीक एक सौ साल पहले इसी महीने उनका निधन हो गया था, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक विशेष स्थान रखते हैं। एक अंग्रेज होने के बावजूद, उन्होंने 1917 में ही एक पुस्तक में उन्होंने भारतीय स्वशासन का समर्थन किया था, जिस पर ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने प्रतिबंधित लगा दिया था। गांधीजी ने इस पुस्तक को ब्रिटिश शोषण और प्रभुत्व के विरुद्ध उग्र अभियोग कहा था। विली पियर्सन, 1907 से कलकत्ता में लंदन मिशनरी सोसाइटी संस्था से जुड़े थे जहाँ उन्होंने वनस्पति विज्ञान पढ़ाया था बाद में उन्होंने दिल्ली व टैगोर जी के शांतिनिकेतन में पढ़ाया। पियर्सन रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी दोनों के करीब हो गये। दक्षिण अफ्रीका की अलग-अलग यात्राओं पर सी.एफ. एंड्रयूज के साथ (1913-14) और फिजी (1915), पियर्सन की भारतीय गिरमिटिया मजदूरों के सन्दर्भ में प्रसिद्ध रिपोर्टों के निर्माण व सह निर्माण में भूमिका रहीं । वह टैगोर की सहमति से ही विली एंड्रयूज के साथ दक्षिण अफ्रीका में गांधी के नेतृत्व वाले संघर्ष के समापन चरण में सहायता करने के लिए गए थे। अपने फिजी दौरे से पूर्व पियर्सन ने 1915 की गर्मियां उत्तराखंड हिमालय में बिताईं, इसी दौरान उन्होंने यहां के जंगलों के विनाश पर कुछ गहन टिप्पणियां भी कीं। 1916 में उन्होंने टैगोर के साथ विदेश यात्रा कीं। टैगोर की कुछ रचनाओं का उन्होंने अनुवाद भी किया।
नौरिया ने आगे यह भी बताया कि पियर्सन ब्रिटिश अधिकारियों के लिए एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बने रहे – उन्हें चीन में गिरफ्तार किया गया और प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान वापस इंग्लैंड ले जाया गया, जहाँ वे युद्ध के अंत तक कई प्रतिबंधों के अधीन रहे। उन्होंने 1920 के दशक की शुरुआत में भारत में शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का समर्थन किया। 25 सितंबर 1923 को इटली में एक ट्रेन दुर्घटना में विली पियर्सन की मृत्यु हो गई तब मरणोपरान्त ब्रिटिश प्रेस ने उन्हें बाजिब तौर पर भारत में सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले अंग्रेज के रूप में वर्णित किया।
अनिल नौरिया ने अर्थशास्त्र विषय का अध्ययन किया है। वर्तमान में वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। वह नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय, नई दिल्ली में वरिष्ठ फैलो (2013-2015) रहे। 1970 के दशक से वे लगातार लिख रहे हैं। अक्सर धर्मनिरपेक्षता, राज्य तथा समकालीन इतिहास पर उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित किया है। लेखन के रुप में उन्होंने विभिन्न पुस्तकों और पत्रिकाओं में योगदान दिया है, इनमें इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (मुंबई), मेनस्ट्रीम (नई दिल्ली), मंथली रिव्यू (न्यूयॉर्क), कल्चर एट पाॅलिटिक (डकार) और नतालिया (पीटरमैरिट्सबर्ग)आदि शामिल हैं। पिछले दो दशकों में उनके लेखन में द अफ्रीकन एलीमेंट इन गांधी, (2006), फ्रीडम, रेस एंड फ्रैंकोफोनी: गांधी एंड द कंस्ट्रक्शन ऑफ पीपलहुड, (2009), साउंडिंग्स इन किंड्रेड स्ट्रगल्स: द इजिप्टियन वॉयस इन गांधी, (2011), गांधी एण्ड सम काॅन्टमपाॅररी अफ्रीकन लीर्डस फ्राॅम क्वाजुलु-नटाल(2012) इंग्लिश एंटी-इंपीरियलिज्म एंड द वेरायड लाइट्स ऑफ विली पियर्सन, (2014), नाॅन वाॅयलैंट एक्शन एण्ड द शोसियलिस्ट रेडिकलिज्मः नरेन्द्रदेव इन इन्डियाज फ्रीडम मूवमेन्ट्स (2015),द पार्टिशन आॅफ इण्डिया: द टारगेटिंग आॅफ नेहरु एण्ड द काॅग्रेस (2016), हरमन कालेनबच एण्ड सोनजा स्लेसिन: ग्लिंपस आॅफ सम लिथ्ुानियन एण्ड इस्ट यूरोपियन लिंक्स इन गांधीज साउथ अफ्रीकन स्ट्रगल एण्ड आफ्टर (2017) गांधी एण्ड वेस्ट अफ्रीका एक्सफ्लोरिंग द एफिनिटिज (2017), आॅन गांधीज रिफलक्शनस ड्यूरिंग हिज लास्ट डेजः सम सोशिया इकोनाॅमिक एण्ड पाॅलिटिकल आस्पैक्ट(2019) और भारत में असहयोग आंदोलन की शताब्दी पर सविनय अवज्ञा की अवधारणाओं की खोज, (2021) आदि कृतियां शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि अनिल नौरिया राजनीतिक और आर्थिक शालीनता के लिए स्थापित महावीर त्यागी फाउंडेशन के संस्थापक ट्रस्टी हैं।
आज के इस कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने सभी उपस्थित जनों का स्वागत किया और निकोलस हाॅफलैण्ड ने अन्त में सबका आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम के दौरान बिजू नेगी, शोध सहायक सुन्दर सिंह बिष्ट, सहित अनेक प्रबुद्ध लोग,इतिहास में रुचि रखने वाले अध्येता, साहित्यकार, पुस्तक प्रेमी, लेखक व पर्यावरण प्रेमी, सहित दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के युवा पाठक व सदस्य उपस्थित थे।