‘द मिनीएचरिस्ट ऑफ जूनागढ़’ का प्रदर्शन व उस पर चर्चा

‘द मिनीएचरिस्ट ऑफ जूनागढ़’ का प्रदर्शन व उस पर चर्चा

दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र तथा हिन्द स्वराज मंच की ओर से छोटी-छोटी बैठकों का सिलसिला व इस पर गम्भीर चर्चा के प्रयास शुरू किये जा रहे हैं। इस प्रयोगात्मक प्रक्रिया के तहत शनिवार, 21 अक्टूबर, 2013 को अपराह्न 4:30 बजे किया गया। इससे पूर्व यह फ़िल्म जुलाई में भी प्रदर्शित की गई थी।

एक लघु फिल्म  “द मिनीएचरिस्ट ऑफ जूनागढ़” का प्रदर्शन संस्थान के तृतीय तल की गैलरी में किया गया। इस फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद उपस्थित लोगों ने समूह चर्चा भी की।

द मिनीएचरिस्ट ऑफ जूनागढ़ फ़िल्म दअरसल विभाजन के कहर की संवेदना को  एक वृद्ध कलाकार हुसेन नक़श के माध्यम से दिखाने का यत्न करती है। इसमें इनके परिवार को मजबूरन पश्चिमी भारत में अपना पुश्तैनी घर बेचने के लिए मजबूर कर दिया।बाद में इनका भरापूरा  परिवार  सुदूर करांची, पाकिस्तान में पलायन  कर गया।

‘द मिनियेचरिस्ट ऑफ जूनागढ़’ फ़िल्म पर लेखक व जनकवि डॉ.अतुल शर्मा ने इस फ़िल्म  को देखने के बाद अपनी लम्बी टिप्पणी देते हुए कहा कि  यह फिल्म  जो भारत पाक विभाजन पर केन्द्रित थी  इसके सादे और खामोश एक्स्प्रेशन मे दर्द भरा था, हर संवाद और दृष्य, ठहरे हुए और सादगी से आगे बढ़ रहे थे, जिसकी अदृश्य पीड़ा और चीख महसूस की जा सकती थी।

पाकिस्तान जा रहे मुसव्विर और परिवार से एंटीक सामान, मकान, खरीदने खरीदार किशोरी लाल बिक्री के कागज़ पर हस्ताक्षर लेने आता है और उसकी मुलाकात एक अंधे मिनिएचर आर्टिस्ट से हो जाती है ,वह जो पेंटिंग उसे दिखाता है वह दर असल कोरे कैनवास ही होते हैं क्योंकि बेशकीमती मिनियेचर तो उनकी पत्नी और बेटी ने बेच दिये थे । स्थिति सामान्य करने के लिए खरीदने वाले किशोरी लाल के प्रति पहले घृणा भाव दिखता है पर जब वह बूढ़े आर्टिस्ट के कहने पर तसवीर की तारीफ नही करता जो कोरे कागज ही होते है तो बेटी के इशारे को समझ कर वह कहता है कि चुप्पी ही जुबान है…..

ऐसे बहुत से अद्भुत संवाद है। जब वह जाने लगते है तो वह कहते हैं कि जब स्थित सामान्य हो जायेगी तो हम फिर आयेगे और अपना मकान तुमसे खरीद लेंगे….पेशगी अन्दर रखी है…जब खरीदने वाला उस पेशगी को देखता है तो वह आर्टिस्ट के हाथों से बनाई राधा कृष्ण की तसवीर होती है।

शुरु मे जब वह अपनी बेटी नूर के साथ चाय पीते है तो कहते है कि प्याले मे आखिरी घूट छोड़ देना क्यो कि वह जूनागढ़ की याद दिलाती है और वापसी की भी ऐसा ही कुछ अभूतपूर्व संवाद थे ।विभाजन पर केन्द्रित इस फिल्म मे नसीरुद्दीन शाह, ने बेहतरीन अभिनय किया है साथ ही सभी ने परिपक्व अभिनय किया है जिनमे राशिका  दुग्गल, राज अर्जुन, पद्मावती राव उदय चंद्र, शामिल है। संगीत और वातावरण के साथ एडिटिंग बेहतरीन थे ।निर्देशन कौशल झा का था  यह फिल्म आधे घंटे की थी पर भाई बीजू नेगी द्वारा उसपर दर्शको से चर्चा करने की सार्थक पहल यादगार रही हिन्द स्वाज्य की टीम ने जगह जगह इसे और अन्य फिल्म व विभिन्न विधाओं को प्रदर्शित व चर्चा करने का भी निर्णय लिया।

फ़िल्म प्रदर्शन व बाद की चर्चा में विजय भट्ट, हरिओम पाली,अरुण कुमार असफल, चन्द्र शेखर तिवारी,  इन्देश नौटियाल और कई युवाओं ने अपनी सक्रिय भागीदारी दी। फ़िल्म का प्रदर्शन गांधी वादी विचारक श्री बिजू नेगी ने किया।