गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां’ के तीसरे परिवर्धित संस्करण का लोकार्पण

गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां’ के तीसरे परिवर्धित संस्करण का लोकार्पण

देहरादून,30 मई,2023को दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से पुस्तकालय के सभागार में प्रख्यात स्वाधीनता सेनानी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डाॅ. भक्तदर्शन द्वारा लिखित व विनसर पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां’ के तीसरे परिवर्धित संस्करण का लोकार्पण किया गया।
इस अवसर पर उपस्थित मुख्य वक्ता प्रो. सुनीलकुमार, पूर्व अध्यक्ष इतिहास विभाग हेमवन्तीनन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय थे। पद्मश्री कल्याण सिंह रावत, भक्तदर्शन जी की सुपुत्री श्रीमती मीरा चौहान और सामाजिक इतिहासकार डाॅ. योगेश धस्माना ने भक्तदर्शन जी के जीवन आदर्शों और समाज निर्माणमें उनकी महति भूमिका से अवगत कराया। डॉ. अतुल शर्मा ने भक्तदर्शन के जीवन और कर्म को अतुलनीय बताते हुए उनपर प्रकाश डाला । उन्होंने 1947 के दौर की ‘कल्पना अगर बदल जाये’ कविता का सस्वर पाठ भी किया।
पुस्तक लोकार्पण के बाद हुई चर्चा में वक्ताओं ने कहा कि एक कुशल राजनेता, पत्रकार, सम्पादक और साहित्य सेवी के रूप में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।प्रो. सुनीलकुमार ने कहा कि भक्तदर्शन जी का सार्वजनिक जीवन 1930 से प्रारम्भ होकर 1990 तक सतत् रूप से पहाड़ को गौरवान्वित करने वाला रहा है।उनकी पुस्तक गढ़वाल की दिवगंत विभूतियां स्थानीय इतिहास और स्वाधीनता आन्दोलन में जनभागीदारी की कहानी को भी सशक्त रुप से व्यक्त करती है।
वक्ताओं ने कहा कि राज्य के विश्वविद्यालयों का यह दायित्व बनना चाहिए कि वह पहाड़ की दिवगंत एवं आदर्श व्यक्तियों द्वारा किए गए योगदान को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए उन पर शोध कार्य करवाएं। खासकर युवा पीढीआगे आकर अपने स्थान क्षेत्र के गुमनाम नायकों कर बारे में जानकारी सामने लाकर इस महत्वपूर्ण काम को पूरा कर सकती है।
पद्मश्री कल्याण सिंह रावत का कहना था कि पहाड़ की सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक दिवगंत विभूतियों को स्कूली/कालेज के पाठ्यक्रमों में शामिल किए जाने की पहल की जानी चाहिए। उन्होंने दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की इस पहल की सराहना कि उनकी ओर से देहरादून में इस तरह के कार्यक्रमों के आयोजन से बौद्धिक माहौल बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
शिक्षाविद कमला पन्त ने चिन्ता ज़ाहिर करते हुए कहा कि हम अपने कई दिवंगत नायकों को भूलते जा रहे हैं। सही मायने में हमारे समाज को इस तरह के छोटे-बड़े कार्यक्रमों के माध्यम से दिवंगत विभूतियों के स्वर्णिम इतिहास को याद करने की परम्परा बनानी चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए इस पुस्तक के तीसरे संस्करण के संपादक डाॅ. योगेश धस्माना ने संगोष्ठी में भक्तदर्शन जी के जीवन आदर्शों पर प्रकाश डाला। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर डाॅ. भक्तदर्शन के योगदान को रेखांकित करते हुए दक्षिण भारत में हिन्दी को विकसित करने में उनके योगदान पर कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान कीं।
कार्यक्रम में भक्तदर्शन की सुपुत्री मीरा चौहान, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत, दिनेश शास्त्री, ब्रिगेडियर भरतभूषण,डॉ.अरुण कुकसाल, बिजू नेगी, कर्नल ललित चमोली, डॉ.कुसुम नौटियाल.डॉ. विमल गैरोला, कर्नल डी.एस. बर्तवाल, सुन्दर सिंह बिष्ट, धीरेन्द्र नेगी, सहित बड़ी संख्या में पुस्तकालय के युवा पाठक साहित्यकार,लेखक व अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।इस अवसर पर पुस्तक के प्रकाशक कीर्ति नवानी द्वारा अतिथियों को पुस्तकें भी भेंट की गई। कार्यक्रम के अन्त में प्रोग्राम एसोसिएट, चन्द्रशेखर तिवारी ने दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से उपस्थित लोगों का आभार व्यक्त किया।