दून पुस्तकालय में ‘उत्तराखण्ड हिमालय में ‘उत्तरैण’ विषय पर बातचीत

दून पुस्तकालय में ‘उत्तराखण्ड हिमालय में ‘उत्तरैण’ विषय पर बातचीत

 देहरादून, 13 जनवरी 2025, मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र और हिमवाल सोसाइटी के संयुक्त तत्वाधान में ‘उत्तराखण्ड हिमालय में ‘उत्तरैण’ : पैनखण्डा का विशेष संदर्भ’ विषय पर एक वार्ता आयोजित की गई।

इस अवसर पर बोलते हुए साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी डॉ. नंद किशोर हटवाल ने कहा कि सामूहिकता उत्सवों का प्रमुख तत्व है। इसी सामूहिकता में उत्सवधर्मिता निहित रहती है। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि अकेले आप कितना भी नाच-गा लो, कुछ खा लो वह उत्सव नहीं होता है। उत्सव हमें सहजीवन और सहअस्तित्व की महत्ता और आनन्द से रूबरू कराते हैं। उन्होंने कहा कि पूरे देशभर में मनाया जाने वाला मकर संक्रांति का पर्व उत्तराखण्ड में भी विशिष्ट तौर-तरीकों से मनाया जाता है। डॉ.हटवाल ने सीमावर्ती क्षेत्र पैनखण्डा की विशिष्टताओं का उल्लेख करते हुए बताया कि इस अवसर पर कौओं को अन्य पकवानों के साथ पैनखण्डा में बनने वाला एक विशिष्ट पकवान ‘चुन्या’ भी खिलाया जाता है। इस अवसर पर पक्षियों को दाना देने की भी परम्परा है। उन्होंने कहा कि इस पर्व को जैव विविधता के महत्व को मध्यनजर रखते हुए पक्षियों के संरक्षण से भी जोड़ा जाना चाहिए।

दून लाइब्रेरी एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम ऐसोसिएट व सामाजिक शोधार्थी चन्द्रशेखर तिवारी ने कुमाऊं क्षेत्र में मनाई जाने वाली मकर संक्रांति की विशिष्टताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि कुमाऊं का यह पर्व जहां माघ स्नान, जप-तप से जुड़ा है वहीं यह प्रकृति, स्थानीय विशिष्ट पकवान, व छोटे बच्चों के प्रति जुडी पारिवार भावनाओं का त्यौहार भी है. उन्होंने पैनखंडा जोशीमठ और रानीबाग का संदर्भ कत्युर वंश से जोड़ते हुए इसके ऐतिहासिक संदर्भ के बिंदुओं पर समुचित अध्ययन किये जाने की बात कही.

वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी एवं रंगकर्मी प्रेम हिंदवाल ने कहा कि पैनखंडा इलाके का यह पर्व अपने में विशिष्ट है. इसके पकवानों का खुद में एक महत्व पूर्ण स्थान है. इस परम्परागत संस्कृति को हम सबको बचाये रखने के आवश्यकता की जानी चाहिए.

इस अवसर पर आयोजित चर्चा में भाग लेते हुए पर्यावरणविद पद्मश्री कल्याण सिंह रावत जी ने भी घुघतिया त्यार के संदर्भ को प्रकृति व पशु पक्षियों से जोड़ते हुए उनके प्रति संवेदनशील व सरंक्षण की भावना बनाये रखने की बात कही.

डॉ. के एस भण्‍डारी ने उतरैण त्‍यवार की अपने गांव सलूड् की यादों को साझा किया, डॉ हरीश भुजवाण ने भी अपने गांव बड्गांव तथा पैनखण्‍डा में उतरैण के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला. कपिल डोभाल ने गढ्वाल के परम्‍परागत व्‍यंजनों की व्‍यावसायिक चुनौतियों से अवगत कराया. डाॅ नूतन गैरोला ने उत्‍तरैण की अपनी बचपन की यादों को साझा करते हुए एक गीत प्रस्‍तुत किया.

इस अवसर पर पैनखण्डा क्षेत्र में उत्तरैण के मौके पर बनाया जाने वाला विशिष्ट व्यंजन ‘चुन्या’ तथा उत्तराखण्ड का विशिष्ट पकवान ‘आर्सां’ का सामूहिक आनन्द भी लिया गया।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. दीपिका डिमरी, सचिव हिमवाल सोसायटी, ने किया। इस अवसर पर डॉ. अरुण कुकसाल, डॉ. योगेश धस्माना, बिजू नेगी, डॉ.लालता प्रसाद, साहित्‍यकार बीना बेंजवाल, भरत सिंह पंवार, आलोक सरीन, जगदीश सिंह, अरुण असफल, अम्मार नक़वी, कमल किशोर डिमरी, प्रदीप डिमरी, अर्चना डिमरी, सुंदर सिंह बिष्ट, अपर्णा वर्धन, साहित्‍यकार अरूण असफल, शैलेन्द्र नौटियाल, मधन सिंह, हरि चंद निमेष, कांता डंगवाल, राकेश कुमार, कुलभूषण नैथानी सहित कई लेखक, साहित्यकार, युवा पाठक व अन्य प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे ।