धराली आपदा पीड़ितों व राहत कार्य में लगे कर्मवीरों का आंखों देखी वर्णन प्रस्तुत किया

धराली आपदा पीड़ितों व राहत कार्य में लगे कर्मवीरों का आंखों देखी वर्णन प्रस्तुत किया

देहरादून, 10 अक्टूबर, 2025. दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से ज्ञानविज्ञान समिति, उत्तराखण्ड के सहयोग से आज सायं केन्द्र के सभागार में आँखन देखी कार्यक्रम के तहत उत्तराखंड हिमालय में इस वर्ष की तबाही से पीड़ितों का आंखो देखा हाल तथा उनके अनुभव के आधार पर आपदा के कारणों व राहत कार्य के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला गया.

भारत ज्ञान विज्ञान समिति से जुड़े विजय भट्ट, इंद्रेश नौटियाल और प्रतीक पंवार ने उपस्थित लोगों के मध्य अपने अनुभव साझा किये. उल्लेखनीय है कि वक्ताओं ने उत्तरकाशी जनपद के धराली में 5 अगस्त, 2025 को आयी आपदा की स्थिति का तीन सप्ताह बाद पैदल यात्रा कर स्थानीय लोगों से जानकारी प्राप्त की.

विजय भट्ट ने कहा कि हिमालय सदियों से मानव को आकर्षित करता रहा है । खोजी इंसान हों या घुमक्कड़ी के शौकीन, हिमालय सदा से उनके कौतूहल का विषय रहा।धार्मिक यात्रा हो चाहे पर्वतारोहण या साहसिक पर्यटन , हिमालय सभी का पसंदीदा स्थल बना हुआ है । भूवैज्ञानिक बताते हैं कि हिमालय जितना खूबसूरत है उतना ही यह संवेदनशील भी है , इसलिए हिमालय की प्रकृति पर मानवीय हस्तक्षेप हिमालय की संवेदनशीलता को देखते समझते हुए किये जाने की जरूरत समझी जानी चाहिए. हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के पिछले कुछ सालों से विकास की तीव्र दौड़ में शामिल होने से आपदाओं से होने वाले नुकसान की भी मात्रा बढ़ी है। क्षेत्र की प्रकृति को समझे बग़ैर विषम विकास से यहाँ की पारिस्थितिकी को नुक़सान पहुँच रहा है। इन्हीं सबके चलते स्थानीय जन – जीवन और सम्पदा पर क़हर बढ़ रहा है । साल 2013 की केदारनाथ त्रासदी से भी हम सबक नहीं ले सके.ऑल वेदर रोड के निर्माण से जगह-जगह पर भूस्खलनों के क्षेत्र उभर आये हैं.उच्च हिमालय का जोशीमठ धंसने लगा है।

वक्ताओं ने आगे कहा कि खीर गंगा में आये फ्लेशफ्लड ने धराली के बाज़ार का नामों निशान मिटा दिया है। हर्षिल में भी नुक़सान हुआ। अपनी जान जोखिम में डालकर कुछ कर्मवीर यहां रात दिन राहत पहुँचाने की व्यवस्था तैयार करने में जुटे हुए थे । क्षेत्र में अवलोकन के लिए गए हमारे दल के साथियों ने वहाँ के पीड़ितों के बारे में जानने की कोशिश की ।

वक्ताओं ने पीपीटी के माध्यम से पीड़ित लोगों की ज़ुबानी उनकी वास्तविक परेशानी को साझा करते हुए उसके बाद यमुनोत्री मार्ग के सयाना चट्टी, देहरादून के सहस्रधारा सहित सौंग और टौंस नदियों से उपजी आपदा व उसके हालातों पर अनुभव साझा करते हुए चर्चा भी की ।

चर्चा के दौरान डॉ. रवि चोपड़ा ने भी विचार रखे.कार्यक्रम के दौरान डा.पंकज नैथानी, चन्द्रशेखर तिवारी अरुण असफल, मनीष ओली, उमा भट्ट, प्रदीप नौडियाल, डॉ. लालता प्रसाद, जगदीश बाबला, मोहन चौहान, प्रदीप डबराल, जगदीश सिंह महर, समदर्शी बड़थ्वाल, योगेन्द्र नेगी,सुंदर विष्ट, आर.पी. भारद्वाज, राकेश अग्रवाल, हिमांशु कुमार, संजय घिल्डियाल, साहित अनेक पर्यावरण प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक व युवा शामिल रहे।